सर्द हवाएँ चली मंगलबेला में,
ओस से आँचल सजाने को,
ओस से आँचल सजाने को,
ललिता-सी लहरायीं निशा संग,
शीतल चाँदनी छिटकाने को |
समेटे थी यौवन चिरकाल से,
समेटे थी यौवन चिरकाल से,
खिला कुँज शेफालिका-सा,
झूल रही झूला नील गगन में,
ख़ुशनुमा फुहार बरसाने को |
पुनीत-सी पीर जगा जनमानस में,
उलीचती अंतरमन के आँगन को,
ठहरी एक पल ठिठुरते पात पर,
भूला-बिसरा कल दर्शाने को |
कथा-व्यथा छिपा हृदय में,
कथा-व्यथा छिपा हृदय में,
ज़िक्र ज़ेहन में जब यह दोहराया,
परदेशी पाखी लौटे देश में,
कुछ कोमल एहसास चुराने को |
नेह-गेह का उमड़ा शीतल झोंका,
किसलय-सी प्रीत पनपाने को,
लोक की मरजाद ठहरा पलकों पर,
थाह शीतलता की जताने को,
सर्द हवाएँ चली मंगलबेला में,
ओस से आँचल सजाने को |
© अनीता सैनी
थाह शीतलता की जताने को,
सर्द हवाएँ चली मंगलबेला में,
ओस से आँचल सजाने को |
© अनीता सैनी
बहुत सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-12-2019) को "आज मेरे देश को क्या हो गया है" (चर्चा अंक-3546) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने देने के लिये.
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ....... ,.....11 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार आदरणीया पम्मी दीदी जी पाँच लिंकों पर मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
हटाएंसादर
काव्यात्मक प्रवाह लिए मन के अहसासों की कोमल अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द चयन ।
अप्रतिम लेखन।
सादर आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपका स्नेह और सानिध्य यों ही बना रहे.
हटाएंसादर
बहुत ही मनभावनी सरस रचना...।
जवाब देंहटाएंकथा-व्यथा छिपा हृदय में,
ज़िक्र ज़ेहन में जब यह दोहराया,
परदेशी पाखी लौटे देश में,
कुछ कोमल एहसास चुराने को |
वाह!!!
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
कमाल का लेखन है आपका अनिता जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी जी
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