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शनिवार, मई 2

शोहरत रत्नजड़ित मुखौटा



नैनों के झरोखे से झरती ज़िंदगियाँ, 
नहीं देख सकती लवणता में डूबी सांसें, 
वे स्वार्थ का लबादा ओढ़े पीड़ा पहुँचाते हैं, 
नहीं छिपा सकती अपनी संवेदना  को। 

वे सांत्वना देते हुए बारंबार तोड़ते हैं,  
 हार के एहसास की माला से जोड़ते हैं,  
 वे चुभते हैं इंसान की इंसानीयत को,  
 नहीं भुला सकती उनकी वेदना को। 

सुसभ्य संस्कारों के पतन का आकलन, 
 लालसाओं की दस्तक करती  विस्तार,
 हुनर की संज्ञा पर छलावे के प्रभुत्त्व का भार, 
 नहीं देख सकती मनीषा की आत्मवंचना को। 

आसान होगा सफ़र सांसों का जहां में,  
शोहरत का रत्नजड़ित मुखौटा पहनने से, 
प्रवचन में गूँथी वाकचातुर्यता यथार्थ को झुठलाती, 
नहीं देख सकती कर्म की अवेहलना को। 

© अनीता सैनी 'दीप्ति' 

26 टिप्‍पणियां:

  1. आसान होगा सफ़र सांसों का जहां में,
    शोहरत का रत्नजड़ित मुखौटा पहनने से,
    बहुत खूब !! लाजवाब सृजन ।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  3. बहुत खूब...सच, ना चाहते हुए भी बहुत कुछ देखना पीड़ादायक होता हैं ,सुंदर सृजन अनीता जी

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    1. सादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  4. आदरणीया अनिता जी, बहुत अच्छी रचना!
    गूँथी वाकचातुर्यता यथार्थ को झुठलाती,
    नहीं देख सकती कर्म की अवेहलना को। बहुत सुंदर पंक्तियाँ!
    यथार्थ को झुठलाने के लिए ही वाग्विलास के बाड़ खड़ा किया जाता है। --ब्रजेंद्रनाथ

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु. सार्थक समीक्षा पाकर अत्यंत हर्ष हुआ.
      आशीर्वाद बनाये रखे.

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  5. सुसभ्य संस्कारों के पतन का आकलन,
    लालसाओं की दस्तक करती विस्तार,
    हुनर की संज्ञा पर छलावे के प्रभुत्त्व का भार,
    नहीं देख सकती मनीषा की आत्मवंचना को।
    नहीं देख सकते फिर भी देखते ही हैं और देखते ही देखते खुद भी इसी वेदना से होकर गुजरते हैंक्या कर पाते हैं हम...।
    बहुत ही उत्कृष्ट लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी आपकी सारगर्भित समीक्षा मिली. विचारों को एक दिशा प्राप्त हुई. हमेशा अपना आशीर्वाद बनाये रखे.

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 04 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी पाँच लिंकों के आनंद पर स्थान देने हेतु.
      सादर

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  7. हुनर की संज्ञा पर छलावे के प्रभुत्व का भार....
    सटीक यथार्थ सामयिक चित्रण ,विचारणीय

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा पाकर अत्यंत हर्ष हुआ.
      सादर

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  8. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर सुंदर समीक्षा पाकर अत्यंत हर्ष हुआ.
      सादर

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  9. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  10. उत्तर
    1. सादर आभार बहना अत्यंत हर्ष हुआ आपकी मोहक समीक्षा पाकर.
      साथ बनाये रखे.

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  11. बहुत ही संवेदनशील लेखन ।
    गहन विचार सुंदर भाव ।
    सार्थक सृजन।
    यथार्थ की धरातल पर खड़ी रचना।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर सकारात्मक समीक्षा हेतु. आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर

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  12. वाह!

    यथार्थ का व्यंग्यात्मक चित्रण जिसमें कहीं-कहीं ऊहापोह की स्थिति से उबरने का मार्ग भी सूझता है। भावपक्ष पर कलापक्ष प्रभावी नज़र आता है। सुंदर सृजन।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
      आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर

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  13. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धन करती समीक्षा हेतु.
      सादर

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