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बुधवार, मार्च 10

निर्वाण (चित्त की भित्तियाँ)


(चित्त की भित्तियाँ -३ )


 विस्मित हो कहे मनस्वी!


फूलों ने स्वरुप स्वयं का बदला!

निशा से नीरस थे प्रभात में खिलखिलाए!

उषा में रंग कसूमल किसने है उड़ेला!

तेज़ रश्मियों ने या सुमन स्वयं मुस्कुराए।


आहा! एक बदरी आई स्नेह सजल हो

करुणा के सुमन खिलाए! ममता बरसाई

मिथ्या स्वप्न की डोरी में था चित्त उलझा

हर्षित पलों की दात्री प्रीत अँजुरी भर लाई।

 

झरना मानवता का मन की परतें भिगोता

वात्सल्यता की सुवास सृष्टि में उतर आई

करुणा की मूरत  उतरी मन आँगन में 

भोर की लालिमा आँचल में स्नेह भर लाई।


रश्मियों का तेज़ ज्यों डग भरती मानवता

चुनड़ी पर धूप ने जड़े सतरंगी सितारें

रेत पर पद-चिन्ह बरखान से उभर आए

दर्शनाभिलाषी भोर का तारा स्वयं को निहारे। 


शीतलता लिए था एक झोंका मरुस्थल पर 

ममत्व की प्रतीति निर्मलता शब्दों से संजोए

भाव-विभोर  मनस्वी के अंतस पर छवि उभर आई

नवाँकुर को छाँव संवेदना की बौछार से पात भिगोए।


 सहसा चिंतन में विघ्न!

 

वृक्ष पर बैठ खग  डाल से पँख खुजाते

मद्धिम स्वर में किस्सा पर्वत पार का सुनाया 

एक नगरी मानव की छाया है अविश्वास

मसी के छींटे उद्गार अंतस में उभर आया। 


 विरक्तता भाव बरसा था धरा के आँचल पर 

लो ! प्रकृति न दौंगरा समर्पण का बिछाया

अतृप्ति के भटके भाव में बिखरी चेतना

ज्यों पुष्प मोगरे पर रंग धतूरे का छाया। 


अहं द्वेष क्रोध अंतस के है कुष्ट रोग 

पीड़ा से मती मनोभावों की भ्रष्टता में भारी हुई 

नीलांबर के वितान पर उभरी कलझांईयाँ सी

वेदना की भीगी पंखुड़ियाँ क्षारी हुई। 


तीसरे पहर की पीड़ा क्षितज की लालिमा 

कपासी मेघों का हवा संग बिखर  जाना  

एकाएक झरने-से बहते जीवन में  ठहराव

हलचल अवचेतन की नयनों में उतर आना ।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

'निर्वाण'

प्रथम द्वितीय भाग के लिंक 

१. निर्वाण (मनस्वी की बुद्ध से प्रीत) 

२. निर्वाण ( स्वप्न की अनुगूँज) 

36 टिप्‍पणियां:

  1. मनोरम रचना
    प्रकृति जब स्वरूप बदलती है तो मन भी उसी तरह नई ऊर्जा से भर जाता है।
    नई रचना

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  2. बहुत सुन्दर और अभिनव रचना।
    शिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शास्त्री जी सर।
      सादर

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  3. गहन भाव लिए अभिनव सृजन जो निर्वाण की पूर्व श्रृंखलाओं का पूरक है । प्रकृति और चिंतन का सुन्दर संयोजन ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया मिली सृजन सार्थक हूँ। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक ११-०३-२०२१) को चर्चा - ४,००२ में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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    1. आभारी हूँ आदरणीय दिलबाग जी सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  5. चित्त की इन्ही भित्तियों से जूझ रही है मनस्वी जहां उसे कोई प्रेरित कर रहा है तो कोई विचलित ।
    बहुत सुंदर चिंतन परक काव्य नाटिका जो बांध रही है मन को ।
    आगे कि इंतजार रहेगा।
    अभिनव सृजन।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया अमूल्य है मेरे लिए। स्नेह आशीर्वाद यों ही बनाए रखे। कभी धूप बनना कभी छाँव बस साथ रहना। अनंत आभार दिल से।
      सादर

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  6. मानवीयता, करुणा और वात्सल्य, मनुष्य-जीवन को एक नया अर्थ देते हैं, उसे अहं, द्वेष और क्रोध जैसे विकारों से मुक्त कराने में सहायक होते हैं.
    बुद्ध के मार्ग पर चल कर हर कोई बुद्ध हो सकता है और हर प्रकार के दुखों से मुक्त हो सकता है.

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    1. सही कहा सर,मैं पर्णतय सहमत हूँ आपके विचारों से यह डगर बहुत सुकून देने वाली होती है।अनंत आभार आपका आपने अपना क़ीमती समय निकाला।एक ऊर्जा के साथ पथ पर अग्रसर रहूँगी। स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  7. मन के भावों को बहुत सुंदर शब्दों में समेटा है ।आनंदम आनंदम ।

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    1. दिल से आभार आदरणीय संगीता दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  8. आपको और आपके पूरे परिवार को मंगलपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. आपको भी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ सर।
      सादर

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  9. तीसरे पहर की पीड़ा क्षितज की लालिमा

    कपासी मेघों का हवा संग बिखर जाना

    एकाएक झरने-से बहते जीवन में ठहराव

    हलचल अवचेतन की नयनों में उतर आना ।।

    सुंदर भावों का चित्रण करती अनुपम रचना..

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
      सादर

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  10. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सुशील जी सर।
      सादर

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  11. प्रभावशाली लेखन - - शुभ कामनाओं सह। हमेशा की तरह भावों व शब्दों का सौंदर्य बिखेरती रचना मुग्ध करती है।

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    1. सादर आभार आदरणीय।आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

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  12. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय जितेंद्र जी सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  13. संक्षेप में बहुत कुछ कह दिया आपने !

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    1. आभारी हूँ आदरणीय संजय जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  14. झरना मानवता का मन की परतें भिगोता

    वात्सल्यता की सुवास सृष्टि में उतर आई

    करुणा की मूरत उतरी मन आँगन में

    भोर की लालिमा आँचल में स्नेह भर लाई।----बहुत अच्छी रचना है बधाई

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन हेतु।
      सादर

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  15. मन को छूने वाले सुंदर ,सहज भावों से सजी रचना प्रिय अनीता । अगली कडी का इंतज़ार रहेगा ।

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    1. जी दी जरुर जल्द ही आपके समक्ष अगली कड़ी होगी।
      दिल से आभार उत्साहवर्धन हेतु।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  16. उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय उर्मिला दी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  17. प्रभावशाली लेखन, हृदयस्पर्शी, भावों को बहुत ही सुंदर शब्दों के साथ प्रस्तुत किया है, लाजवाब अनीता जी नमन

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    1. आभारी हूँ आदरणीया ज्योति जी सृजन सार्थक हूआ।
      आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      स्नेह बनाए रखे।
      सादर

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