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रविवार, मार्च 14

निर्वाण (खग मनस्वी संवाद )


भाग-4 निर्वाण (खग मनस्वी संवाद )


वृक्ष पर बैठ खग  डाल से पँख खुजाते

मद्धिम स्वर में किस्सा पर्वत पार का सुनाया 

एक नगरी मानव की छाया है अविश्वास

मसी के छींटे उद्गार अंतस में उभर आया। 


 विरक्तता भाव बरसा था धरा के आँचल पर 

लो ! प्रकृति न दौंगरा समर्पण का बिछाया

अतृप्ति के भटके भाव में बिखरी चेतना

ज्यों पुष्प मोगरे पर रंग धतूरे का छाया। 


अहं द्वेष क्रोध अंतस के है कुष्ट रोग 

पीड़ा से मती मनोभावों की भ्रष्टता में भारी हुई 

नीलांबर के वितान पर उभरी कलझांईयाँ सी

वेदना की भीगी पंखुड़ियाँ क्षारी हुई। 


तीसरे पहर की पीड़ा क्षितज की लालिमा 

कपासी मेघों का हवा संग बिखर  जाना  

एकाएक झरने-से बहते जीवन में  ठहराव

हलचल अवचेतन की नयनों में उतर आना ।


 संवेदन हीन हैं विचार कलुषित मानव के 

पंख फैलाए व्याकुल मन से खग बोले 

  पलकों की पालकी पर भाव सजाए  

कहो न खग! मनस्वी ने नयनों के पट खोले।


हे सखी! गाथा विश्व में वैभव सम्पन्नता संग 

समझ के दरिया में डूबे मानव व्यवहार की

आत्मछटपटाहट प्राबल्यता प्राप्ती की मंशा 

खंडित चित्त के किवाडों के दुर्व्यवहार की।


 अनभिज्ञ मानव समझे स्वयं को आत्मज्ञानी

ज्यों कर्म कारवाँ बढ़े कोलाहल की झंकार 

सत,रज, तम ठूँठ हुए उजड़े चित्त के मनोभाव 

भ्रम यवनिका मन-दर्पण,धूल-मिट्टी मोह भार।


द्वेष क्रोध को धार लगाते, छूटा प्रीत का हार 

हृदय पाषाण, भाव मरु,लू के थपेड़े हैं स्वभाव

ताप बढ़े काया का ज्यों  किरणों का प्रहार 

स्वार्थसिद्धता पट्टी आँखों पर अतृप्त हैं भाव।


नहीं!नहीं!!नहीं!!!खग,मानव ज्ञाता, है विश्वास

जीवन कलाएँ अर्जित करना,है इसका स्वभाव

बोध-निर्बोध भाव तत्त्व बाँधे, बंधुत्त्व अंबार

पीड़ित पीड़ा में उलझा समझे न विकारों का प्रभाव।


निर्मल-निश्छल स्वभाव,है करुणा का अवतार 

भावों-अभावों से जूझता,टाटी सुखों की बाँधता 

बंजर जीवन भाता किसको? हे खग!

विचार उचटते अंतरमन के,सुख का छप्पर टूटता!


अविश्वास बढ़ा भू पर,देख! छाए बादल विश्वास के

पुरवाई प्रीत, बरसात आस्था के नवांकुर खिलाएगी

वृक्षों पर पात संबंधों के अंकुरित हो खिल जाएँगे 

डाली-डाली लदी फूलों से धरा दुल्हन-सी सज जाएँगी।


द्वेष धुलेगा एक दिन,मन-दर्पण रश्मियों-सा चमकेगा  

हे खग!आभा मुख पर,पुलकित मानवता हर्षाएगी

निश्छल झरना झरे कर्मण्यता का, हैं सौरभ से भाव 

शब्द सुमन सुवासित हो हृदय शीतल कर जाएँगी।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'


'निर्वाण'

प्रथम द्वितीय एवं तृतीय भाग के लिंक 👇

१. निर्वाण (मनस्वी की बुद्ध से प्रीत) 

२. निर्वाण ( स्वप्न की अनुगूँज) 

३ निर्वाण (चित्त की भित्तियाँ) 

35 टिप्‍पणियां:

  1. खग-मनस्वी संवाद को आपने बहुत सुन्दर और सटीक शब्दों में बाँधा है।

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  2. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील जी सर।
      सादर

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  3. मानव और खग का मनोहारी संवाद . सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय संगीता दी जी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  4. मनस्वी और खग संवाद पूर्व की श्रृंखलाओं की तरह रोचकता लिए । आगे बढ़ती कथा गहनता की ओर बढ़ती हुई । अत्यंत सुन्दर सृजन अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीया मीना दी जी मनोबल बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  5. बहुत सुन्दर !
    सुखद अंत हो तो विघ्न-बाधाएं किसे याद रहती हैं?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सर।
      अत्यंत हर्ष हूआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर नमस्कार।

      हटाएं
  6. द्वेष धुलेगा एक दिन,मन-दर्पण रश्मियों-सा चमकेगा
    हे खग!आभा मुख पर,पुलकित मानवता हर्षाएगी
    निश्छल झरना झरे मानवता का, हैं सौरभ से भाव
    शब्द सुमन सुवासित हो हृदय शीतल कर जाएँगी।

    प्रिय अनीता जी, अत्यंत हृदयग्राही सार्थक लेखन के लिए साधुवाद 🙏

    हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

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    उत्तर
    1. दिल से आभार प्रिय वर्षा दी जी।
      सृजन सार्थक हूआ आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ कामिनी जी चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  8. विचारविमर्श को प्रेरित करती दार्शनिक कविता।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर सृजन है। सुंदर सकारात्मक भावों को समेटे बहुत बढ़िया रचना। आपको ढेरों बधाईयाँ और शुभकामनाएँ। सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय वीरेंद्र जी सर।
      सादर

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

      हटाएं
  11. बहुत ही सुंदर रचना, बहुत बहुत बधाई हो

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीया ज्योति जी।
      मनोबल बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार।
      सादर

      हटाएं
  12. उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय अनीता जी।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  13. मनस्वी खग सर्वानंद बहुत सुंदर और ज्ञान चर्चा जैसा सच मनस्वी बुद्ध की ओर चल पड़ी हैं।
    सस्नेह।

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  14. संवाद पढ़ें कृपया सर्वानंद को।

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय कुसुम दी जी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  15. विचारणीय आलेख अनिता दी।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ज्योति जी।
      सादर

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  16. वाह!प्रिय अनीता ,खग -,मनस्वी संवाद बखूबी से चित्रित किया है आपने । अंत बहुत सकारात्मकता से भरा हुआ है ,काश ऐसा हो .... ।

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    उत्तर
    1. दिल से आभार प्रिय दी आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर नमस्कार

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