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शनिवार, अक्तूबर 2

ट्रेंड



बारिश की बूँदों का 

फूल-पत्तों की अंजुरी में 

 सिमटकर बैठना

बाट जोहती टहनियों का 

हवा के हल्के झोंके के

स्पर्श मात्र से ही 

निश्छल भाव से बिखरना

डाल पर डोलती पवन का 

समर्पण भाव में डूबना

बिन बादल बरसी बरसात का

यह रुप

कभी  ट्विटर पर

 ट्रेंड ही नहीं करता।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'


12 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर , यथार्थ से जुड़े भाव !!

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 04 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04-10-2021 ) को 'जहाँ एक पथ बन्द हो, मिले दूसरी राह' (चर्चा अंक-4207) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. प्रकृति का अनछुआ सौन्दर्य पक्ष।

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  5. यथार्थ को बयां करती बहुत ही उम्दा रचना

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  6. बिन बादल बरसी बरसात और ट्विटर पर ट्रैंड!!!
    वाह!!!
    अद्भुत ...लाजवाब।

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  7. बहुत सुंदर प्रिय अनिता वो निश्छल से बचपन के दिन याद आ गये जब बारिश बंद हो जाती थी और बच्चों की टोलियां गहरे घने पेड़ों के नीचे इक्कठे हो जाते और उसमें कोई एक दो सरदार की भूमिका में डाली पकड़ कर खूब हिलाता और लगता जैसे निसर्ग खिलखिला उठता ।
    वो फूहार जो उन पेड़ पत्तों से झड़कर तन मन को प्रफुल्लित पुलकित करती थी और सभी मिलकर चिल्ला उठते लो फिर मेघा बरस गया।
    सच्च ये तो ट्विटर पर ट्रेंड नहीं करता।
    सुंदर यथार्थ कोमल भावों का सहज सृजन।

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