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मंगलवार, अक्टूबर 26

माँ को भी माँ चाहिए


बेटियों के हृदय पर

किसने खड़ी की होंगीं ?

गगनचुंबी

कठोर विचारों की ये दीवारें

जरुर जिम्मेदारियों ने

लिबास बदल 

मुखौटा लगाया है

लोक-लाज में डूबा 

 भ्रम कहता है

स्वतः ही जीवन भँवर में

बेटियाँ बेड़ियों में उलझी हैं!

नहीं! नहीं!

कदाचित कोई निर्दयी

ठगी, हठी चित्त ही रहा होगा

बाँधे हैं जिसने अदृश्य

बेड़ियों से बेटियों के पाँव

बेड़ियों के जंजाल से 

मुक्त करते हैं स्वयं को 

थोड़ा-सा प्रेम,समर्पण

स्वच्छचंद धरा पर बहाते हैं 

कठोर विचारों की नींव का

पुनर्निर्माण करते हुए 

प्रेम के प्रतिदान से

जिम्मेदारियों के नवीन एहसास से

आसमान के कलेज़े को

चीरते हुए निकली ये अदृश्य

मीनारें गिराते हैं

 माँ  को बेटी बना

 कलेजे से लगाते हैं।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

30 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की खातिर स्नेहिल उद्गार एक चिंतन शील बेटी के । लड़की तो प्रकृति से ही ममतामयी होती है । जब वह माँ का कर्तव्य वहन करती माँ के जीवन के बारे में सोचती है तो ऐसा सृजन सृजित होता है । अति सुन्दर ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

      हटाएं
  2. गहन चिंतन परक अभिव्यक्ति ,सही कहा आपने उम्र के एक मुकाम पर आते आते माँ इतनी निढाल हो जाती है तन से मन से,कि कुछ स्नेहिल पल जैसे वो लुटाती आई है परिवार पर बच्चों पर वैसा ही पाने की एक झीनी सी चाहत उनके मन में उठती है ,और एक बेटी इसे सहज समझ सकती है कि माँ को भी स्नेह का स्पर्श चाहिए।
    माना बेटियाँ हर समय भाग भाग कर मायके नहीं जा सकती कुछ जिम्मेदारियां कुछ सामाजिक परिस्थितियां पर उन बंधनों को सहज ही तोड़ कर बेटियों को भी समय समय पर माता पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहना चाहिए ।
    सार्थक हृदय स्पर्शी सृजन।

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    1. दिल से अनेकानेक आभार आदरणीय कुसुम दी जी।
      सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन का मर्मस्पष्ट करने हेतु।
      आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

      हटाएं
  3. माँ को भी माँ चाहिए ....
    एकदम सही कहा अनीता जी आपने....कौन नहीं चाहता माँ का दुलार... जब बेटियाँ माँ बनती हैं तब माँ को और भी अच्छे से समझने लगती है इसीलिए सर्वप्रथम बेटियाँ को माँ को स्नेह एवं परवाह दें हमारे प्रेम परवाह एवं सेवा की सर्वप्रथम हकदार हमारी माँ ही है जिन्होंने बड़े धैर्य एवं सहनशीलता के साथ हममें ये गुण विकसित किये..अब हम अपनी गृहस्थी एवं जिम्मेवारियों में उलझे हैं पर हमें माँ की सेवा के लिए वक्त निकालना चाहिए।
    उत्तम भाव..उत्कृष्ट सृजन
    वाह!!!

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय सुधा दी जी... सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन का मर्मस्पष्ट करने हेतु। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-10-2021) को चर्चा मंच "कलम ! न तू, उनकी जय बोल" (चर्चा अंक4229) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि
    आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर
    चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और
    अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आभारी हूँ सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  5. आपकी अभिव्यक्ति विचारोत्तेजक है, मनन करने योग्य है; इसमें संदेह नहीं।

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    1. आभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  6. एक माँ से ही संसार की कल्पना साकार होती है

    बहुत सुन्दर

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  7. बहुत ही सारगर्भित और मन को छूती हुई रचना । पीढ़ी दर पीढ़ी हर दौर में बेटी से मां और मां से बेटी का रिश्ता हमेशा सृष्टि के सृजन का आधार रहा,और मां बेटी को जमीन से आसमान जितनी ऊंची शिक्षा देती रही । बहुत ही सार्थक सृजन

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    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी जी।
      सच कहा आपने माँ तो माँ होती है शब्दों से परे।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर स्नेह

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  8. बहुत सुन्दर अनीता !
    बचपन हो, जवानी हो या फिर बुढ़ापा हो !
    पंछी को मुक्त गगन में उड़ने के लिए पंख तो चाहिए ही !
    बेटी हो, पत्नी हो या फिर माँ हो !
    अपने ढंग से जीने के कुछ पल तो उसे भी चाहिए ही !

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    उत्तर
    1. सादर नमस्कार सर।
      मानव की मनोवृतियाँ दिन व दिन ठगी होती जा रही हैं। समय के हाथों उलझें विचार... कहना कठिन है।
      मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सादर प्रणाम

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  9. उत्तर
    1. आभारी हूँ सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  10. बहुत सुन्दर सृजन

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  11. भावपूर्ण सार्थक लेखन

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  12. माँ के प्रति अथाह स्नेह दर्शाती बहुत ही सुंदर रचना प्रिय दी।
    एक आँगन जिसमे बेटियाँ खिलखिलाती है बड़ी होती हैं पता ही नहीं चलता कब वह आँगन पराया हो जाता है।
    बहुत कुछ टुटा है मन ही मन में...।

    आसमान के कलेज़े को
    चीरते हुए निकली ये अदृश्य
    मिनारें गिरातें हैं
    माँ को बेटी बना
    कलेज़े से लगाते हैं... प्यार बाँटने वाले को भी तो प्यार चाहिए होता है। हृदय स्पर्शी पंक्तियाँ।

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    उत्तर
    1. तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया मिली अत्यंत हर्ष हुआ बहना। तुम्हारे बहुत सारा स्नेह💕💞
      कुछ नहीं टुटा है...।
      खुश रहो।

      हटाएं
  13. खुद से संवाद करती है रचना...
    माँ फिर बेटी फिर माँ ... ये क्रम सिर्फ नारी ही जी सकती है और नारी मन को समझ सकती है ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। मनोबल बढ़ाने हेतु दिल से आभार।

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  14. अति सुंदर एवं सराहनीय रचना।

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