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गुरुवार, जून 9

आख्यां



आख्यां हैं ऊणमादी ढोला 

ढ़ोळै  खारो पाणी।

मुंडो मोड़ै टेढ़ी चाल्ये 

खळके तीखी वाणी।।


काळै कोसां आया बादळ 

भाळा छेकड़ा छिपे।

रूंख उकसे पगडंडिया जद

गळयां बीजड़ा बिछे।

कै जाणे बरसती छाट्या

आखर हिवड़ा साणी।।


कुआँ पाळ मरवा री ओटा 

घट गढ़ती घड़ी-घड़ी।

बात सगळी जाणे जीवड़ो 

 अज सूखै खड़ी-खड़ी।

पीर पिछाणे टेम चाल री

ओल्यूं घाल्ये घाणी।।


बेगा-बेगा घर आइज्यो 

काळज रा पान झड़ै।

ओज्यूँ बिखरी धूप आँगणा 

लू दुपहरी रै गड़ै।

पून पूछे पुन्याई बैरण

 गीणावै जग जाणी।।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

शब्दार्थ

उणमादी- मानसिक संभ्रांति, नटखट 

ढ़ोळै- ढुलना,गिराना 

खळके- घूमना 

काळै कोसां-बहुत दूर से 

भाळ -पून, हवा 

छेकड़ा-सुराख़

घट - घड़ा 

रूंख- पेड़ 

उकसे- बढ़ना

गळया- भीग हुआ 

छाट्या-छांट 

पाळ-जगत,कुएँ के ऊपर चारों तरफ़ बना हुआ चबूतरा

सगळी-सभी

मरवा -कुएँ के बुर्ज

सूखै-सूखे 

पिछाणे-पहचानना 

ओल्यूं-याद 

घाल्ये- करना 

घाणी-बार-बार घूमना 

बेगा-बेगा-जल्दी -जल्दी 

आइज्यो -आना 

काळज रा -कलेजा 

पान-पत्ता 

ओज्यूँ-फिर, दुबारा 

पूछे- हालचाल पूछना 

पुन्याई- पुण्य 

गीणावै-गिनवाना 

20 टिप्‍पणियां:

  1. पीर पिछाणे टेम चाल री, ओल्यूं घाल्ये घाणी।।
    बेगा-बेगा घर आइज्यो काळज रा पान झड़ै

    सच्चा प्रेम तो ऐसा ही होता है अनीता जी। इंतज़ार की घड़ियां सचमुच लंबी होती हैं। प्रियतम की स्मृति आंसू बनकर मनोमस्तिष्क पर छा जाती है। मन यही पुकारता है कि वे शीघ्र-से-शीघ्र घर आ जाएं तथा विरह मिलन में परिवर्तित हो।

    बहुत सुंदर, मन को छू लेने वाला गीत रचा है आपने।

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    1. सुप्रभात सर।
      हृदय से अनेकानेक आभार 🙏 आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया सृजन का मर्म स्पष्ट कर पाठकों को समझने में सहायता प्रदान करती है, आप अपना अनमोल समय निकलकर ब्लॉग पर पधारे मेरा उत्साह द्विगुणित हुआ।
      हृदय से आभार।
      सादर नमस्कार

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  2. प्रिय अनीता ,अद्भुत सृजन ।खारा पानी नयनों को भिगो रहा है ,प्रियतम से शीध्र आने की विनती ....सुंदर शब्दों से सजी रचना ।

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    1. दिल से आभार प्रिय शुभा दी जी 🙏
      सादर स्नेह

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  3. सुंदर रचना | अनीता जी आपसे निवेदन है आप भावार्थ भी दिया करें तो रचना शीघ्र समझ आएगी

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    1. सादर नमस्कार अनुपमा जी।
      आप ब्लॉग पर पधारे हृदय से आभार आपका, अभी समय आभाव के चलते कुछ व्यस्त हूँ। समय मिलते ही भावार्थ लिखूँगी 🙏
      सादर स्नेह

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-06-2022) को चर्चा मंच     "उल्लू जी का भूत"   (चर्चा अंक-4458)  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  5. बहुत सुन्दर सृजन प्रिय अनीता जी शब्दार्थ से मिला कर समझने की कोशिश की फिर भी भाव नहीं पकड़ पाते।

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    1. हृदय से आभार सुधा जी आप आए सृजन सार्थक हुआ। मैं समझ सकती हूँ। लेखक लिखने का आदी होता है और शायद मैं भी उमड़ते भावों को रोक नहीं पाती। डायरी के रूप में सहेज लेती हूँ 🙏
      आप आए हृदय से आभार.
      सादर

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  6. बहुत सुंदर मन को छूती कृति !

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  7. वाह ... धीरे धीरे आपका राजस्थानी भाषा का संकलन बढ़ रहा है ... बहुत भावपूर्ण ...

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    1. जी आपने ठीक कहा पुस्तक जल्द ही आपके हाथों में होगी। आपकी प्रतिक्रिया ने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया है हृदय से अनेकानेक आभार।
      सादर

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  8. बेगा-बेगा घर आइज्यो
    काळज रा पान झड़ै।
    ओज्यूँ बिखरी धूप आँगणा
    लू दुपहरी रै गड़ै।
    प्रतीक्षा के पलों को जताती हृदयस्पर्शी कृति । अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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    उत्तर
    1. हृदय से आभार आदरणीय मीना जी आप आए सृजन सार्थक हुआ।
      सादर स्नेह

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  9. सुंदर शब्दों से सजी रचना ।

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  10. Excellent Article!!! I like the helpful information you provide in your article.

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  11. This may be an issue with my internet browser because I’ve had this happen before.

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