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शनिवार, सितंबर 24

दायित्व


मुझे सुखाया जा रहा है

सड़क के उस पार खड़े वृक्ष की  तरह

ठूँठ पसंद हैं इन्हें

वृक्ष नहीं!

वृक्ष विद्रोह करते हैं!

जो इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं

समय शांत दिखता है

परंतु विद्रोही है 

इसका स्वयं पर अंकुश नहीं है 

तुम्हारी तरह, उसने कहा।

उसकी आँखों से टपकते

आँसुओं की स्याही से भीगा हृदय 

उसी पल कविता मन पड़ी थी मेरे 

सिसकते भावों को ढाँढ़स बँधाया

कुछ पल उसका दर्द जिया

उसकी जगह

खड़े होने की हिम्मत नहीं थी मुझ में 

मैंने ख़ुद से कहा-

मैं अति संवेदनशील हूँ!

और अगले ही पल

मैंने अपना दायित्वपूर्ण किया!


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

15 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-9-22} को "श्राद्ध कर्म"(चर्चा-अंक 4562) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  2. अतिसुन्दर काव्य प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. वर्तमान व्यवस्था में शोषण की और दमन की पराकाष्ठा पर, गहरी चोट करने वाली बहुत मार्मिक कविता !
    वृक्ष हो या फिर इंसान हो, उसका ठूंठ बन कर, उसका संवेदनहीन हो कर, जीना ही उसके लिए निरापद है.
    ठूंठ को खाद-पानी की भी ज़रुरत नहीं होती और ठूंठ बने इंसान की ज़रूरतें भी बहुत कम होती हैं.

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवार 26 सितम्बर ,2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  5. मर्मस्पर्शी कविता। हार्दिक आभार।

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  6. हृदय के विद्रोही भावों को कुचलकर ठूँठ बनकर ही जीवन के दायित्वों का निर्वहन संभव।
    जीवन की जटिलताओं के मर्म स्पर्श करती गूढ़ रचना।
    बहुत अच्छी रचना अनु।
    सस्नेह।

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  7. बेनामी26/9/22, 9:07 pm

    मर्मस्पर्शी रचना👌👌- उषा किरण

    जवाब देंहटाएं
  8. ठूँठ पसंद हैं इन्हें

    वृक्ष नहीं!

    वृक्ष विद्रोह करते हैं!

    जो इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं

    समय शांत दिखता है

    परंतु विद्रोही है!

    इसका स्वयं पर अंकुश नहीं है

    तुम्हारी तरह!
    बहुत सटीक... ठूँठ तो पसंद ही होंगे न
    ठूँठ से क्या परेशानी... क्या चाहिए ठूँठ को...शांत निर्जीव निष्क्रिय होकर भी साथ में खड़ा ।
    बहुत सुंदर सृजन ।

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  9. सचमुच कविता विवश कर ही देती है !
    साधु !

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  10. संवेदना भी अपनी क़ीमत माँगती है

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  11. कभी फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पधारें
    शब्दों की मुस्कुराहट
    https://sanjaybhaskar.blogspot.com

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