मीरा — एक अंतरध्वनि
कविता / अनीता सैनी
१७ जून २०२५
लघुकथा —
ध्वनि और दृश्य का
एक गहरा द्वंद्व है।
धरती के गर्भ से
फूटा था जो
उष्ण लावा —
अब शीतल राख बन चुका है।
बिखरे भावों में उलझा
एक चोटिल जीवन —
जो जीना तक
भूल चुका है।
हाथों में
एकतारा — या तानपुरा,
वाणी में
झरता है
निस्संग प्रेम…
यह तुम्हारे
दृश्यों का द्वंद्व है —
जहाँ
ध्वनि को तुम “भजन” कहते हो,
और
दृश्य को — “मीराँ”।
सच्चे प्रेम में सारे द्वंद्व खो निर्द्वन्द्व एक हो जाते है । बहुत सुंदर रचना ... !
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