गूँगी गुड़िया
अनीता सैनी
शुक्रवार, अक्टूबर 5
ख़ामोशी
ज़ख़्म दिल का आँखें बरस गयीं,
मोहब्बत रही वो मेरी, क्यों ख़ामोश रही ?
जज़्बात दिल की दीवारों में दफ़्न हुए,
आँखों में तैरते सपने एक पल में ओझल हुए,
सहम गयीं हवाएँ यही क़ुसूर रहा,
ख़ौफ़ बेरहम आँधियों का न यक़ीन हुआ,
वो पैग़ाम -ए -उल्फ़त सीने में समा गये ,
नहीं लौटोगे तुम यही बात रुला गयी
- अनीता सैनी
1 टिप्पणी:
Lokesh Nashine
23/4/19, 3:56 pm
बहुत उम्दा
जवाब दें
हटाएं
उत्तर
जवाब दें
टिप्पणी जोड़ें
ज़्यादा लोड करें...
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएं