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गुरुवार, फ़रवरी 21

ज़िंदगी मेरी


                                            
                    वक़्त  का  मरहम, 
           कभी सुना,आज ज़िंदगी  लगा गयी,  
                 ज़माने में थे कभी नक़्श-ए-क़दम , 
              आज यादों की परछाई  बन  गये |

                       मुस्कुराती  ज़िंदगी , 
             अचानक  शहादत का  ख़िताब दिला  गयी,  
                 भाग्य  रहा  यह  मेरा ज़िंदगी, 
                   देश  के  काम  आ गयी |

                       मुहब्बत की  मशाल, 
                आमजन के हाथों में थमा गयी, 
                    द्वेष पनप  रहा  जहां   में, 
                   मुहब्बत  का  पाठ पढ़ा गयी |

                       जला   दिलों  में  चिंगारी, 
                   दीपक  से   मशाल  बना   गयी,  
                      कितनों  की  सोई  आत्मा, 
                    कितनों का ज़मीर  जगा  गयी |


                       मक़ाम  यही  था  मेरा, 
                    शहादत   साथ  निभा  गयी, 
                    कुछ  को  किया  बेनक़ाब,  
                कुछ की  अक़्ल ठिकाने आ  गयी  |

                               - अनीता सैनी 

42 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सृजन👌👌

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    1. प्रिय सखी मीना जी सस्नेह आभार आप का |
      सादर

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 22 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया यशोदा दीदी "पांच लिंकों का आनन्द में" मुझे स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आप का | आशीर्वाद बनाए रखे |
      सादर

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  3. उत्तर
    1. आदरणीय तहे दिल से आभार उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए
      सादर

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  4. उत्तर
    1. सह्रदय आभार आदरणीय सुशील जोशी जी |
      सादर

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  5. वाह , बेहतरीन रचना सखी

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    1. प्रिय सखी अभिलाषा जी आप को बहुत सा स्नेह आभार |
      सादर

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  6. उत्तर
    1. प्रिय सखी नितु जी आप को बहुत सा स्नेह आभार |
      सादर

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  7. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति सखी।
    मन भा गई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सखी कुसुम जी सह्रदय आभार आप का उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए |
      सादर

      हटाएं
  8. जला दिलों में चिंगारी
    दीपक से मशाल बना गई
    कितनों की सोई आत्मा
    कितनों का ज़मीर जगा गई
    बहुत सुंदर, प्रणाम।

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    1. सह्रदय आभार आदरणीय आप का
      प्रणाम
      सादर

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  9. बहुत खूब आदरणीया
    .... लाजवाब !

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  10. उत्तर
    1. आदरणीय अज़िज़ जौनपुरी जी आप का सह्रदय आभार उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए |प्रणाम
      सादर

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  11. वाह शानदार रचना सखी

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    उत्तर
    1. प्रिय सखी अनुराधा जी तहे दिल से आभार आप का उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए |
      सादर

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  12. बहुत बढिया!!शब्दों के साथ अपनी भावनाओ को बाँधना..और व्यक्त करना कविता भावुक कर गयी हमें

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रणाम आदरणीय |
      सह्रदय आभार आप का उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए |
      सादर

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  13. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-02-2019) को "नमन नामवर" (चर्चा अंक-3255) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. सह्रदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मुझे स्थान देने के लिए | आशीर्वाद बनाए रखे |
      सादर

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  14. बेहतरीन भावों को संजोती हृदयविदारक रचना।

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  15. मुक़ाम यही था मेरा
    शहादत साथ निभा गई
    कुछ को किया बेनक़ाब
    कुछ की अक़्ल ठिकाने आ गई |
    बहुत ही भावपूर्ण.... हृदयस्पर्शी रचना....।

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  16. मुस्कुराती जिंदगी
    अचानक शहादत का ख़िताब दिला गई
    भाग्य रहा यह मेरा, जिंदगी
    देश के काम आ गई
    बहुत खूब सखी ,हृदयस्पर्शी रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय कामिनी बहन
      उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए
      सादर

      हटाएं
  17. मुक़ाम यही था मेरा
    शहादत साथ निभा गई
    कुछ को किया बेनक़ाब
    कुछ की अक़्ल ठिकाने आ गई |


    लाज़वाब हैं

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