भीतर की थिरकन
✍️ अनीता सैनी
….
कभी-कभी
हवा के हल्के झोंके से
भाव
मन की भीतरी डोर कस लेते हैं
और भीतर के समंदर में
एक सूक्ष्म कंपन उठता है,
बिना शोर, बिना संकेत
जैसे चेतना के तल पर
किसी ने धीरे से
उँगली रख दी हो।
फिर
भावनाएँ
अपने ही बोझ से
धीरे-धीरे गलने लगती हैं,
और बरसात का पानी बन
सीधे आँखों तक चली आती हैं।
मन की गहराई में उठी
यह एक अदृश्य लहर
सिर्फ किनारे ही नहीं तोड़ती
पूरा भूगोल
एक पल में बदल देती है।
और तुम कहते हो
यह तो बस
नजर भर की भरभरी है।

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 06 दिसंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंWahhh
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
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