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बुधवार, सितंबर 19

ज़िंदगी


दहलीज़   का  सन्नाटा,
आँगन  की  ख़ामोशी,
मासूम निःशब्द निगाहें,
तलाश  रही   हर  पल,
आहट  ज़िंदगी   में  ।

असुवन में समा गयी, 
साँसों संग बह गयी
कुछ  क़दम चली,
राह  में  रह  गयी  ।

बेख़बर हुयी   या,
 बिखर गयी ,
कुछ कदम चली,
 लड़खड़ा  गयी,
वहीं दहलीज़  पर,
 सिमट कर रह गयी ।
तुम्हारे इंतज़ार में,
 ज़िंदगी चलना  भूल  गयी ।

# अनीता सैनी 

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