Powered By Blogger

शुक्रवार, जुलाई 19

खेतीहर अब रो रहा,



जब से अपने देश में, आया पूँजीवाद।
कहर काल का पड़ गया, निर्धन है लाचार।।
--
खेतीहर अब रो रहा, पसरा अत्याचार।
धनपतियों के साथ में, देश हुआ लाचार।।
--
खेतीहर अब मल रहा, अपने खाली हाथ।
लाचारी को लाँघता, ढूँढे सुख का साथ।।
--
चौमासे की झड़ी में, खिले चमन में फूल।
पानी-पानी सब जगह, उड़े कहाँ से धूल।।
--
अपना भारत देश है, सभी तरह समृद्ध।
अब भी है परिवार के, मुखिया सारे वृद्ध।।
--
होता है विज्ञान का, कुदरत से जब मेल।
सुख से सारे लोग तब, खेलें  अपना खेल।।

- अनीता सैनी 

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ! सार्थक दोहे हुत शानदार सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक सामयिक दोहे।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!,सखी ,बहुत सुंदर और सार्थक दोहे ।

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्कृष्ट भावों को समेटे बहुत सुन्दर दोहे ।

    जवाब देंहटाएं
  5. वर्तमान की स्तिथि का सजीव चित्रण,
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर और सार्थक दोहे सखी

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया और प्रासंगिक।

    जवाब देंहटाएं
  8. लाजवाब दोहे...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. जीवन के अलग अलग रंगों को परिभाषित करते भावपूर्ण दोहे प्रिय अनीता, जो तुम्हारे लेखन की विशिष्ठ पहचान हैं । हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया दी जी
      सादर स्नेह

      हटाएं